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अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी की सदसाला तक़ारीब से ख़िताब करते हुए वज़ीर-ए-आज़म नरेंद्र मोदी ने मुस्लिम यूनीवर्सिटी की सौ साला ख़िदमात को ख़िराज-ए-तहिसीन पेश किया। और इस अज़ीम जामिया के साबिक़ तलबा की ख़िदमात को भी ग़ैरमामूली तौर पर सराहा। दुनिया हैरान है कि अचानक वज़ीर-ए-आज़म नरेंद्र मोदी अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी की मुसबत और तामीरी ख़िदमात के क़ाइल कैसे हो गए। हालाँकि उनकी जमात के लिए अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी हिन्दुस्तान की तक़सीम के लिए ज़िम्मेदार है। और उनकी पार्टी के दो नाम निहाद मुस्लिम पार्टी क़ाइदीन शाह नवाज़ और आर एस एस के नज़रियात के तर्जुमान रिज़वान ने तो एक नेशनल टीवी चैनल के मुबाहिसे में बाक़ायदा अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी के तलबा को मुवाफ़िक़ पाकिस्तान क़रार दिया था। मुहम्मद अली जिनाह की पोर्टरेट को गैलेरी से निकालने के लिए बाक़ायदा तहरीक चलाई गई और यूनीवर्सिटी तक मार्च भी मुनज़्ज़म किया गया था। और ये भी एक तल्ख़ हक़ीक़त है कि हालिया मुख़ालिफ़ शहरी तरमीमी क़ानून और एन आर सी के ख़िलाफ़ एहतिजाज करने वाले इसी यूनीवर्सिटी के तलबा पर किस क़दर दिल्ली पुलिस ने मज़ालिम ढाए और अब भी कई तलबा क़ैद-ओ-बंद की सऊबतें बर्दाश्त कर रहे हैं।
ये वही अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी है, जिसके अक़ल्लीयती किरदार को बरख़ास्त करने के लिए हुकूमत ने हलफ़नामा दाख़िल किया है और कुछ अजब नहीं कि जिस तरह जम्मू-कश्मीर के ख़ुसूसी मौक़िफ़ को बर्ख़ास्त किया गया। इसी तरह अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी और दीगर अक़ल्लीयती तालीमी इदारों का किरदार ख़त्म कर दिया जाएगा। वज़ीर-ए-आज़म मोदी ने एक अच्छी जामा तक़रीर की। अगर उनकी हुकूमत अक़ल्लीयतों और अक़ल्लीयती इदारों के तईं वाक़ई हमदर्दाना रवैय्या इख़तियार करती तो तक़रीर के हर लफ़्ज़ की सताइश हो सकती थी। ताहम अब हर लफ़्ज़ पर ग़ौर करने को जी चाहता है। जहां तक हमारा ख़्याल है ही नहीं यक़ीन है कि वज़ीर-ए-आज़म मोदी के लब-ओ-लहजे में तबदीली दरअसल हिन्दुस्तान के अरब ममालिक बिलख़सूस सऊदी अरब से मुस्तहकम होते हुए ताल्लुक़ात हैं। इस वक़्त कश्मीर और इसराईल के मसला पर पाकिस्तान सऊदी अरब, मुत्तहदा अरब इमारात के इलावा कई मुस्लिम ममालिक से दूर हो चुका है। सऊदी अरब के साथ ताल्लुक़ात बदतरीन नौईयत के हो गए हैं। गुज़शता एक साल के दौरान वही मुहम्मद बिन सलमान जिन्होंने इमरान ख़ान का अपने मुल्क में इस्तिक़बाल करते हुए ख़ुद-कार ड्राईव करते हुए अपने साथ महल ले गए थे और अपने ख़ुसूसी तय्यारा के ज़रीया इमरान ख़ान को वापिस भेजा था ऐन बीच रास्ते से अपना तय्यारा वापिस तलब कर लिया था क्यों कि इमरान ख़ान महातिर मुहम्मद और तय्यब अरदगान के साथ मिलकर एक नया इस्लामी बलॉक क़ायम कर रहे थे। और एक टीवी चैनल का आग़ाज़ करने वाले थे। मुहम्मद बिन सलमान और इमरान ख़ान के दरमयान दूरियाँ इस क़दर बढ़ती गईं कि एक अरब डॉलर्स बिला सूदी क़र्ज़ फ़ौरी वापिस तलब कर लिया गया, जो पाकिस्तान ने चीन से लेकर अदा कर दिया। सऊदी अरब ने पाकिस्तान को तेल की सरबराही के मुआहिदे की भी तजदीद नहीं किया। और मज़ीद तीन अरब डालर का क़र्ज़ वापिस तलब करने वाले हैं। पाकिस्तान को अलग-थलग करने के लिए एक तरफ़ पाकिस्तान से दूरी और दूसरी तरफ़ हिन्दुस्तान से ताल्लुक़ात को मज़ीद मुस्तहकम किया गया और एक सौ बिलीयन डॉलर्स की सरमायाकारी करते हुए हिन्दुस्तान की मईशत को बेहतर बनाने के अज़ाइम का इज़हार किया गया।
यूं तो इमरान ख़ान के इक़्तिदार सँभालने से पहले से ही सऊदी अरब ने अपनी सरज़मीन से 2 लाख 86 हज़ार पाकिस्तानीयों को वापिस कर दिया था। ताहम इमरान ख़ान से तल्ख़ियों के बाद उन्होंने सऊदी अरब की फ़ौज में और इस की दिफ़ा के लिए तैनात पाकिस्तानी सिपाहीयों को भी बर्ख़ास्त करने का फ़ैसला किया। जनरल राहील पाशा पाकिस्तान और सऊदी अरब की मुशतर्का अफ़्वाज के कमांडर थे। वो अपने वतन वापिस हो चुके हैं। तल्ख़ियों को दूर करने के लिए पाकिस्तानी फ़ौजी सरबराह क़मर बाजवा और आई एस आई के डायरेक्टर जनरल फ़ैज़ हमीद ने सऊदी अरब का दौरा किया, मगर प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान ने उनसे मुलाक़ात से इनकार कर दिया। दूसरी तरफ़ हिन्दुस्तानी फ़ौजी सरबराह जनरल एम एम निरावन ने सऊदी दार-उल-हकूमत का दौरा किया और जनरल फ़हद बिन अबदुल्लाह मुहम्मद अलमआसिर से मुलाक़ात की, जो सऊदी रायल फ़ोर्स के कमांडर हैं। हिन्दुस्तानी फ़ौजी सरबराह को रायल सऊदी लैंड फ़ोर्स हेडक्वार्टर में गार्ड आफ़ ऑनर पेश किया गया। उनसे फ़ौजी सरबराह जनरल फ़य्याज़ बिन हामिद अलरवेल के इलावा सऊदी अरब जवाइंट फ़ोर्सस के कमांडर लेफ़्टिनंट जनरल मुतलक़ बिन सालिम बिन अलाज़ीमा ने भी मुलाक़ात की। दोनों ममालिक के दरमयान दिफ़ाई तआवुन को फ़रोग़ कैसे दिया जाये इस पर बात की गई। वैसे भी बहुत पहले ही किंग अबदुलअज़ीज़ सिटी आफ़ साईंस ऐंड टेक्नालोजी (KACST) और हिन्दुस्तानी ख़लाई तहक़ीक़ी इदारे (ISRO) के दरमयान बाक़ायदा मुआहिदा हो चुका है और मुहम्मद बिन सलमान के दौरे के मौक़े पर दोनों ममालिक के नेशनल सेक्युरिटी एडवाइज़रस की सतह पर भी दहश्तगर्दी के ख़ातमे के लिए जवाइंट वर्किंग ग्रुप की तशकील से इत्तिफ़ाक़ किया गया था।
साल 2019 ई में हिन्दुस्तानी वज़ीर-ए-आज़म की सऊदी अरब में वीज़न 2030 कान्फ़्रेंस में शिरकत और मुहम्मद बिन सलमान के दौरा-ए-हिंद के बाद से हिन्दुस्तान सऊदी अरब के लिए एक बहुत बड़ी मार्किट है और सऊदी अरब हिन्दुस्तान को अपना 18 फ़ीसद कच्चा तेल इम्पोर्ट करता है। वीज़न 2030 इस मेयार पर खरा उतरता है। मेक इन इंडिया, क्लीन इंडिया, स्मार्ट सीटीज़ और स्टार्ट एप से वो मुतास्सिर नज़र आता है। आने वाले बरसों में सऊदी अरब के हर शोबे में ग़ैर मुस्लिम हिंदुस्तानियों की तादाद में इज़ाफ़ा होगा। अभी भी हर अहम शोबे के अहम आहदों पर ग़ैर मुस्लिम अफ़राद ही फ़ाइज़ हैं। ये हाल तमाम मुस्लिम ममालिक का है। मुत्तहदा अरब इमारत को शेट्टी नामी एक हिन्दुस्तानी बिज़नस से कई बिलीयन डॉलर्स का धोका हो चुका है। मुस्लिम ममालिक में रहते हुए सोशल मीडिया पर इस्लाम और मुस्लमानों के ख़िलाफ़ मुहिम भी चलाई गई, जिस पर कई अफ़राद को मुल्के बदर किया गया।
बहरहाल सऊदी अरब के लिए इस वक़्त तुर्की एक बड़ा ख़तरा है, जो आलम-ए-इस्लाम की क़ियादत का दावेदार है और पाकिस्तान उस का सबसे बड़ा हिमायती है। ताहम सऊदी अरब ने ट्रम्प इंतिज़ामिया से अपने ताल्लुक़ात को बराए-कार लाते हुए तुर्की के ख़िलाफ़ पाबंदियां आइद करवाईं और तुर्की भी क़रीब क़रीब इसराईल को तस्लीम कर चुका है। उसने इसराईल से अपना सफ़ीर वापिस तलब किया। मगर 40 साला उफ़ुक़ ऊलू तास को इसराईल में नया सफ़ीर मुक़र्रर किया गया है, जिससे अंदाज़ा होता है कि उसने इसराईल की मुख़ालिफ़त ज़रूर की मगर इससे ताल्लुक़ात ख़त्म नहीं किए। बढ़ते हुए आलमी दबाव और पाबंदियों के पेश-ए-नज़र बहुत मुम्किन है कि तुर्की का भी सऊदी अरब की तरह पाकिस्तान से फ़ासला बढ़ाता जाये। इस वक़्त कोशिश यही है कि किसी तरह से पाकिस्तान को आलमी बिरादरी में यका-ओ-तन्हा कर दिया जाये। अगरचे कि इमरान ख़ान ने हर आलमी फ़ोरम से कश्मीर के मसले को छेड़ा, फ़लस्तीन के लिए आवाज़ उठाई, मगर इस्लामी ममालिक की अक्सरियत ने ख़ामोशी इख़तियार की, बल्कि सऊदी अरब, मुत्तहदा अरब इमारात ने इस मसले पर पाकिस्तान की मुख़ालिफ़त भी की। ओ आई सी में, मुस्लिम मुल्क ना होने के बावजूद मुस्लिम कसीर आबादी के पेश-ए-नज़र हिन्दुस्तान को जो मौक़िफ़ दिया गया, जिस तरह से साबिक़ में सुषमा स्वराज ने ओ आई सी के इजलास से ख़िताब किया, उसका पाकिस्तान ने बाईकॉट किया था। ये वाक़िया दरअसल हिन्दुस्तान के मुस्लिम ममालिक के साथ बेहतर होते ताल्लुक़ात और पाकिस्तान की आहिस्ता-आहिस्ता इन ममालिक से दूरी का इशारा देते हैं।
सऊदी अरब और दूसरे अरब ममालिक के साथ बेहतर होते ताल्लुक़ात के पेश-ए-नज़र मौजूदा मर्कज़ी हुकूमत के लिए ये ज़रूरी है कि वो ओ आई सी और अक़वाम-ए-मुत्तहिदा में हिन्दुस्तानी मुस्लमानों की हालत-ए-ज़ार, उनके साथ किए जानेवाले इमतियाज़ी सुलूक, CAA، NRC، NPR के बहाने उन्हें दूसरे दर्जे का शहरी बनाने की कोशिशों के ख़िलाफ़ उठने वाली आवाज़ों को ख़ामोश किया जाये। इस के लिए ख़्यालात और लब-ओ-लहजे की हद तक ही सही तबदीली ज़रूरी है। हिन्दुस्तानी मुस्लमानों से मुताल्लिक़ किसी पालिसी के ऐलान या हिन्दुस्तान के बेहतर रवैय्ये के इज़हार के लिए ऐवान पार्लीमान से ज़्यादा मूअसिर जगह अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी हो सकती थी। क्योंकि अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी को हिन्दुस्तानी मुस्लमानों का तर्जुमान और नुमाइंदा समझा जाता है। यहां से उठने वाली हर आवाज़ तहरीक बनी। इस की मुख़ालिफ़त करने वाले ज़लील-ओ-ख़ार हुए। जिस तरह से बारक ओबामा ने आलम-ए-इस्लाम को अपने बारे अच्छा तास्सुर क़ायम करने के लिए ज़हन साज़ी की तहरीक का आग़ाज़ जामिया अज़हर से किया था। मिस्टर मोदी ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी से ऐसा ही काम किया है। उनकी तक़रीर अपनी जगह एक दस्तावेज़ है। आज नीयत और इरादा चाहे कुछ हो? मुस्तक़बिल में जब कभी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी पर कोई फ़िर्कापरस्त उंगली उठाएगा तो इस यूनीवर्सिटी की हुब्ब-ए-वतनी, मुल्क-ओ-क़ौम की तरक़्क़ी में इसके नाक़ाबिल फ़रामोश के लिए मोदी की तक़रीर का मुसव्वदा एक सनद के तौर पर पेश किया जा सकेगा।
मोदी ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के सैकूलर किरदार, तमाम मज़ाहिब के बाहमी एहतिराम का एतराफ़ किया। कोरोना बोहरान के दौरान पी ऐम केअर फ़ंड में इसकी गिरांक़दर अतीए की सताइश भी की। मजमूई तौर पर अपनी तक़रीर से उन्होंने अपनी इस शबिह को मिटाने की कोशिश की, जो मुख़ालिफ़ मुस्लिम शबिह के तौर पर अभी तक है और शायद रहेगी। उनकी तक़रीर में, लब-ओ-लहजे में बाशऊर लोगों ने सऊदी खजूर की मिठास महसूस की। आपका क्या ख़याल है?
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